"गुरु" कोई "व्यक्ति" नहीं, गुरु कोई"शरीर" नहीं,
"गुरु" एक "तत्व" है , गुरु एक"शक्ति है" । "गुरु" यदि "शरीर" होता, तो इस छोटी सी "दुनिया" में, एक ही "गुरु" - "पर्याप्त" होता ।समझना होगा "गुरु" एक "भाव" है l"गुरु" "श्रद्धा" है । "गुरु" "समर्पण" है । आपका "गुरु: आपके "व्यक्तित्व" का "परिचय" है । "कब" "कौन", "कैसे" आपके लिये "गुरु" "साबित" हो, यह आप की "दृष्टि "एवं "मनोभाव "पर निर्भर करता है । सुना और कहा जाता है "गुरु" "प्रार्थना" से मिलता है । "गुरु" "समर्पण" से मिलता है, "गुरु" "दृष्टा" "भाव" से मिलता है, "गुरु" "किस्मत: से मिलता है । लेकिन सच तो यह भी है "गुरु" "किस्मत" वालों को "मिलता" है l इस कथन को *अनंत श्री विभूषित ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी कई बार इस तथ्य को सुनाते थे, समझाते थे l सच तो यह है कि गुरु का सही अर्थ आज तक लोग समझ नहीं पाये हैँ l
ठिठोली मे कहो गुरु क्या ख़बर है ऐसा कह कर एक उपहास करते हम बहुदा सुन लेते हैँ l
लेकिन गुरु एक गूढ तत्व है जो समझ गया उसका जीवन कुछ अंशों तक सुधर गया l
ऋषि मुनियों की असंख्य पंक्तियाँ हैँ --
काम क्रोध लोभ मोह
हमारे जीवन की पग डांडियों के कांटे हैं
इनसे जो बच गया उसीका जीवन सम्भल गया l
सुर तुलसी कबीर जायसी रहिम आदि जैसे महान भक्ति भाव वाले मनीषियों ने संसार
को सहज जीने की प्रेरणा देते देते अपना जीवन न्यौछावर कर गए पर सांसारिक जीवन भोगी आज तक बिगड़े हुए बिखरे पड़े हैँ
न गुरु का बोध हुआ न ही जीवन की व्याधियों से छुटकारा मिला l सुदामा कृष्ण अर्जुन कृष्ण जैसा सखा ,
राम भक्त हनुमान -
राम भरत का भाई - प्रेम
जैसे असंख्य उदाहरण हैँ
गुरु का पद श्रेष्ठ था
और आगे भी यथावत रहेगा l
पंडित jyotirmalee@gmail.com
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