Monday, 31 August 2020

Astrologer Pandit Jyotirmalee
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क्या कहते हैं सुशांत सिंह राजपूत के ग्रह


मधुसूदन मिश्र, पंडित ज्योतिर्माली


लग्न में शनि पर मंगल का विराजमान होना और उस पर राहु की दृष्टि का पड़ना अशुभ ही कहा जाएगा। इसी दिन बालीवुड अभिनेता सुशांत की नृशंस हत्या कर दी गई। जन्मकालीन मंगल भी शनि पर ही विराजमान होने से परिस्थितियां सदैव उनके जीवन में अनुकूल न होने के बावजूद भी उसे अनुकूल बनाने में तत्पर रहते थे। इसी कारण सुशांत के आलोचक भी पैदा हुए और उनपर घात भी लगाए रहते थे। अष्टम भाव में शनि और केतु का बैठना और दूसरे भाव में राहु का विराजमान होना परिवार से अलगाव को दर्शाता है। मंगल पर शनि का बैठना और धनभाव पर दृष्टि पड़ने से धन हानि की ओर संकेत करता है।

सुशांत सिंह राजपूत उच्चाकांक्षी इंसान थे। फिल्मी करियर से उन्हें लाभ भी मिला। मानसिक अस्थिरता और कम अवधि में कुछ बड़ा कर गुजरने की कड़ी में लोगों से मिलते बिछड़ते गए। 6 अप्रैल 2020 से वृहस्पति की दशा आई जो मार्केश भी है। वृहस्पति में वृहस्पति का अंतर काल में ही ग्रह अपनी चाल चल गए अथवा विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। इनसे लोग लाभान्वित होते रहे कभी धर्म कर्म की ओर प्रेरित कर तो कभी भोलेपन में आकर अथवा धर्मभीरु होकर भी। मित्र एवं छोटे भाई बहन बनकर जो भी इनके पास आए होंगें इनसे लाभान्वित हुए होंगे। शान शौकत और दिखावे के साथ जीना पसंद करते थे तो दूसरी ओर अंत:करण में सादगी थी जिसे कभी कोई देख नहीं सका होगा।

उच्च का राहु जब लग्न पर क्रूर दृष्टि डालता है तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति डांवाडोल हो जाती है। षडयंत्रकारी बाहर थे परन्तु हावी थे। जलने अथवा किसी विद्दुत यंत्र का उपयोग करके प्रताड़ित करने की बात कही जा सकती है। इस साजिश में रिया चक्रवर्ती के पिता और छोटा भाई शौविक भी बराबर का भागीदार दिखाई देते हैं। रिया चक्रवर्ती के मित्र और नेक्सस उनके पिता से भी जुड़े हुए दिखाई देते हैं। सुशांत सिंह राजपूत की रहस्मय मौत से रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स माफिया जैसे गिरोहों के द्वारा लाभ मिलने की बात कही जा सकती है। षष्ठेश द्वीतीय भाव में बैठकर गले और धन पर प्रहार की ओर इंगित करता है। घटनाक्रम के दिन के ग्रहों पर गहन अध्ययन से पता चलता है कि 6 आदमी और एक महिला की उपस्थिति में इस घटना क्रम को अंजाम दिया गया होगा। काफी अथवा चाय जैसे तरल पदार्थ में जहर भी देने की बात संभव है। रिया के संपर्क वाले लोग अंधेरे में हैं। दुनिया के सामने अब तक नहीं आए हैं। रिया चक्रवर्ती के रोजमर्रा के जान पहचान वाले लोग ही सुशांत के शत्रु नजर आते हैं। 13- 14 जून 2020 की रात को 10 से 2 बजे के बीच घटना को अंजाम देने की बात ग्रह योग इंगित करते हैं।



8 जून के दिन के ग्रह की बात करें तो उस दिन रिया और सुशांत के बीच तनाव और मनमुटाव की बात स्पष्ट होती है। बड़ी बहन मीतू के ग्रह उस दिन प्रभावशाली थे। जिससे लाभ के क्षेत्र में उथलपुथल के साथ विचारों में अस्थिरता सुशांत के दिमाग में चल रही थी। सुशांत तीव्र गति से बातों को समझना और समझाना चाहते थे। सुशांत कुछ निर्णय ले लेना चाहते थे क्योंकि अंधेरे से पर्दा उनके सामने उठ चुक था। जिससे आवेश में रिया ने घर छोड़ने का निर्णय ले लिया पर अपनी आंखें और कान सुशांत के पास स्टाफ के तौर पर छोड़ कर गईं। शुत्रु बुद्धि से धर्म के नाम पर धन लुटता रहा।

डाक्टर चक्रवर्ती ने भी अपने अनुभव से अपनी बेटी के सपनों को संजोने की भरपूर कोशिश की होगी। सुशांत को हाथ से निकलता देख गिरोह के साथ हत्या की साजिश में सहयोग दिया होगा, जिसमें घर के सभी नौकरों ने बखूबी साथ निभाया। 

कह सकते हैं कि लोगों ने जिस थाली में खाया उसी में छेद करने से हिचके भी नहीं।

अगर सरकार की गहन जांच में कोई अडंगा नहीं डाले तो जांच ऐजेंसियां तह तक जाने में सक्षम होंगीं। असली गुनगहार जनता के सामने आ सकते हैं। 

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Wednesday, 5 August 2020

रामलला प्रसन्न 

हैं !



मधूसुदन मिश्र, “पंडितज्योतिर्माली

आज मन अति प्रसन्न है। सिर्फ मेरा ही क्यों, विश्व में बसे करोड़ों हिन्दुओं का दिल गदगद हो गया है। आज अयोध्या में इतिहास रच दिया गया है। भारत का सिर गर्व से ऊंचा हो गया है। रामलला के वनवास के दिन पूरे हो गए और अब वो अपने महल में शान से विराजेंगें। प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि पूजन कर शिलान्यास कर रामलला के भवन की नींव रख ही दी। राजनीति तो बहुत हुई पर सत्यमेव जयते। कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। जिस संचलानकर्ता के अरबों भक्त हैं प्रत्यक्ष रुप से परोक्ष रुप से तो प्रत्येक जीव में बसे हैं राम और जीवन आधार हैं राम। जगत संचालक को भी धरती पर अपने लिए लड़ाई लड़नी पड़ी अपरोक्ष रुप से। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जैसा हम सब जानते हैं कि रामलला बालरुप में विराजमान हैं। बालक, जिसे जिस रुप में रखिए वो मुस्कुराता ही रहता है परन्तु उसका एक दुख माता पिता को क्या पूरे घर को झकझोर कर रख देता है। बालक कुछ कहता नहीं पर उसकी हंसी और क्रंदन उसके भावों को स्पष्ट करता रहता है। उसी प्रकार हमारे रामलला ने स्वयं कुछ नहीं बोला परन्तु उनके अनुयायी, उनके भक्त, उनके में आस्था रखने वाले लोगों को कष्ट हुआ और वो अदालत का दरवाजा खटखटाने लगे। स्वयं से ही कोई राम का परिवार बना और रामलला की ओर से लड़ा। तो कुछ अपने होकर भी बाह्य मजबूरियों के कारण रामलला के विपरीत भी गए। बालक किसी के गुण दोष मन में नहीं रखता। हमारे रामलला भी सबको समान दृष्टि से देखते हैं। सबका उद्धार ही करते हैं। जब भी मैं जाता था तो हर हिन्दू की तरह मन रो पड़ता था कि इतने बड़े राम हमारे और ऐसे एक टेंट में विवादास्पद स्थिति में जीवन जी रहे हैं। राजनीतिक बाध्यता ने लोगों के हाथ पैर जकड़ रखे थे। पर अब ओवैसी जैसे लोगों को चुप हो जाना चाहिए क्योंकि इकबाल अंसारी जैसे लोग जब साथ दे सकते हैं जिन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी तो पूरा देश क्यों नहीं।

भारत ही एक ऐसा देश है जो सर्वधर्म को मान्यता देता है। चीन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में क्या हमारे मुस्लिम भाईयों को इतनी सुविधा मिलती है। इतना सम्मान मिलने पर भी अगर आपकी मानसिकता नहीं सुधरे तो राम ही भला करें सबका।


हम सभी ने अपने घरों में दीपावली मनाई क्योंकि दिल में खुशी का एहसास था। आज हमारा बालक अपने शानदार झूले में झूलेगा उसकी किलकारियों से पूरा देश ही नहीं पूरा विश्व गूंजेगा। इसी शुभकामना के साथ कि कोरोड़ों हिन्दुओं की आस्था अब जल्द से जल्द मूर्त रुप ले और बनकर तैयार हो जिससे रामलला को हम सब कोरोना से मुक्त होकर उनकी प्राण प्रतिष्ठा के शुभ मुहुर्त में उपस्थित हों जिससे हम सबकी आंखें धन्य हो जायें।

जिसप्रकार बालक अपनी मधुर मुस्कान से सबको आकर्षित कर लेता है। उसी तरह 1989 में चुनाव के चलते ही सही राजीव गांधी ने राम भरोसे अपनी नाव पार करने की सोची थी। जिससे हिन्दू जनमत उनके पक्ष में टूट कर पड़ता। शिलान्यास उस समय भी हुआ परन्तु कुछ खामियों के कारण बाधित रह गया और रामलला टेंट में ही रह गए। कानूनी विवाद और केंद्र में चलने वाली सरकार दोनों ने ही रामलला के मुद्दे को मात्र एक मुद्दे के तौर पर भुनाया। भाजपा ने भी जनमत पाया राम भरोसे परन्तु अन्ततोगत्वा आज हो ही गया। 

"होइहैं वही जो राम रति राखा

को करि तर्क बढ़ावै साखा"

तात्पर्य है कि मोदी जी के हाथों होना विदित था जो चरितार्थ हो गया।

लालकृष्ण आडवानी जो इस कार्य में अग्रदूत रहे भले आज कोरोना के कारण वो उपस्थित नहीं हो पाए परन्तु उनकी रामलला के प्रति उनके कार्यों को नींव की ईंट की भांति मजबूती से लोग याद अवश्य करेंगें। चाहत तो अटलबिहारी जी की भी थी परन्तु उनके काल में दलों की मंडली इतनी जुझारु थी कि शासन कर पाना ही मुश्किल था। मोदी जी प्रारम्भ से ही आडवानी जी और अटल जी के नेतृत्व में कार्यरत रहे जिससे उन्होंने पार्टी की आंतरिक और बाह्य संतुष्टियों और असंतुष्टियों को समझा परखा और भविष्य में उन विवादों पर कैसे विजय पानी है इसकी रणनीति बनाई जो आज सफल हुई। कई गणमान्य जैसे अशोक सिंघल अब इस दिन को देखने के लिए आज उपस्थित नहीं रह पाए लेकिन भाजपा ने उनके परिवार के सदस्यों को वही स्थान देकर उनकी आत्मा को शांति पहुंचायी और यह बतलाया कि पार्टी में किसतरह सबकी शहादत को याद रखा जाता है। वहीं मोहन भागवत समेत उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी भी उपस्थित होकर एक स्वर्णिम इतिहास रच डाला।


आज ही के दिन 05 अगस्त 2019 को तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति दिलवाई और कश्मीर से धारा 370 हटाई। जिससे करोंड़ों हिन्दू दिलों और कश्मीरी पंड़ितों को राहत मिली। भले ही आज वो विश्व में कहीं भी अपना गुजर बसर कर रहे हों।

हिन्दू इतिहास में आज का दिन स्वर्णिम काल के अभ्युदय के समान है। 1992 में लाखों हिन्दुओं का बलिदान आज सफल हुआ। कोलकाता के कई परिवारों के नवयुवकों ने उस समय अपनी शहादत दी थी। उन माताओं की आंखों के आंसू सूखे भले न हों पर आज संतोष और राहत की सांस जरुर मिली होगी। अंत भला तो सब भला।