Wednesday, 16 December 2020

2021 : बंगाल में दीदी का त्रिकोणीय संघर्ष

*2021 -बंगाल में दीदी का त्रिकोणीय संघर्ष 
- मधुसूदन मिश्र, पण्डित ज्योतिर्माली
"बंगाल में तीन पार्टी  और अकेले  ममता दीदी"*
"अटल बिहारी के शासन काल "मे कभी संसद की तेज तर्रार कही जाने वाली बंगाल की शेरनी दीदी ममता बनर्जी की पहचान हुआ करती थी वही दीदी कभी रेलमंत्री की शान थी तो कभी बंगाल में कांग्रेस के लिए सिर दर्द तो कभी बाम की सरकार को जमीन से उखाड़ फेंकने के लिए कसम खाएं थी । *ज्योतिबसु के दलहौसी स्थित विधान सभा  दफ्तर में हिंसक बनी और तब ज्योतिबसु के लिए भारी सिरदर्द बन गईं । उधर  कांग्रेस से अलग हुई फिर एक नई पार्टी *तृणमूल* जो मुकुल राय के हाथों में थी उसको अपने कब्जे में करके सर्वेसरबा मुकुल को बना डाली।
दौर पर दौर बिता समय की प्रतीक्षा करती हुई दीदी अन्तोगत्वा बाम पंथी को बंगाल से ऐसे साफ करने में सफल हुईं जैसे लोमड़ी दुम दबाकर जंगल की ओर भाग जाती है।  दुबारा बाम पंथी बंगाल क्या भारत से उनका पत्ता साफ होने लगा उन का हार्ट अटैक होता गया।  ममता दीदी की तुलना किसी महिला नेता से करने में साउथ की  नृत्यांगना से मुख्य मंत्री बनी जयाललिता से की जाती रही इनके मुकाबले मायावती  की राजनीति फीकी पड़ गई वहीं दीदी बंगाल की सिरमौर बनती चली गईं।कांग्रेस की पार्टी से अनेकों बार निकलती फिर मिलजाती अगर किसी महिला मंत्री ने सोनिया गांधी को शिकस्त  दिया तो वह हैं- बंगाल की एक मात्र "ममता दीदी"*
 समय की  चाल भला कौन पहचानता है।  देश मे जनमानस - सेवा की राजनीति करने वाले लोग  न जाने क्यों किसी काल के गाल में समाते जा रहे हैं भारत की राजनीति केवल स्वार्थपूर्ति के लिए ही ठहर गई है।  कुछ निःस्वार्थ सेवक अंगुलियों पर गिने जा सकते है। कांग्रेस काल मे  "वाद" की शुरुआत हुई जो आगे चल कर जाति वाद  ब्राह्मण वाद क्षत्रिय वाद वैश्य वाद और हरिजन वाद  में बढ़ती गई  इस तरह से असंख्य जाति वाद की फौज विधान सभा और संसद की कुर्सियों तक जा पहुंची।
अम्मा ,बहनजी, ऐंटिनियो और  बाम को  निरस्त करने वाली ममता दीदी नम्बर वन बन गयी।
दीदी की राज नीति की पकड़ पुरुष वर्ग नेताओं से कहीं अधिक आगे हो चुकी है।
कम्पटीशन में जैसे शाहरुख खान अमिताभ बच्चन की जोड़ी वर्षो से सुनी जा रही है। उसी तरह आज की राजनीतिक में सबल और "ममता" शब्द से विपरीत अर्थ में विपक्ष के लोग कोई नया नामकरण भी करने लगे हैं।
जो हो बंगाल की राजनीति के पीछे कांग्रेस और बाम दल तो था ही अब एक नया नाम भी जुट गया है।
"ओबैसी  जो हैदराबाद"से  है जो सम्भवतः दीदी कांग्रेस और bjp के किसी एक दल को मजबूत करने का इरादा अवश्य दर्शाती है।
अब सवाल है कि क्या होगा भविष्य इन तीन पार्टियों का
कौन होगा -बंगाल का नया या फिर पुराना सरदार 


नोट:  इस पर विस्तृत जानकारी के लिये कीजिये प्रतीक्षा पंडित ज्योतिर्माली के द्वारा भविष्यवाणी का कई खण्डों में   सही निष्पक्ष और बेबाक भविष्यवाणी का।।

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