नीच हो जाते हैं जब
देवगुरु वृहस्पति
सौरमंडल में निरंतर गतिशील नौ ग्रह अपना प्रभाव धरती के जड़ चेतन सबपर अपना अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव डालते रहते हैं। जीवन की गतिविधियां किसप्रकार ग्रहों के अदृश्य मार्गदर्शन पर निहित है। यह वर्षों से देखा जा चुका है और अनंत काल तक सृष्टि के हर युग में देखा जाता है। प्रत्येक ग्रह का समय समय शुभ अथवा अशुभ फलदायक के रुप में प्रगट होते हैं। परन्तु कुछ ग्रह क्रूर एवं पापी होते हैं जैसे शनि ही वो ग्रह है जो व्यक्ति से अथक परिश्रम करवाता है। जो कभी की दरिद्रता की झांकी भी दिखा जाता है। वहीं देवगुरु वृहस्पति नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि वृहस्पति को देवताओं के गुरु होने का सम्मान प्राप्त है। देवता भी जिनसे परामर्श लेते हैं, जिनका आदर करते हैं। जिनमें इतनी गुणवत्ता है कि देवताओं को परामर्श देते हैं उचित अनुचित का ज्ञान कराते हैं। पंच तत्व इनके गुणों से प्रभावित होते रहते हैं। इस धरा पर हमरा जड़ अथवा चेतन जिस अवस्था में भी ईश्वर ने हमारा कर्म निर्धारित किया होता है हम उसका जाने अंजाने में पालन करते हैं। देवगुरु के प्रतिबिंब स्वरुप हम धरती पर ब्राह्मण जाति को देखते हैं। यह ब्राह्मण जाति सभी वर्गों को ज्ञान, अज्ञान, उचित अनुचित से परिचित करवाती है। पर क्या होता है जब ज्ञानी अज्ञानी बन जाता है। क्या होता है जब गुरु की बुद्धि शून्य हो जाय अथवा अज्ञानी जनों की संगति का कुप्रभाव उस पर ही पड़ने लगे। ऐसा ही ग्रहों के साथ भी होता रहता है। ऐसा ही कुछ है जब मकर राशि पर देवगुरु का आगमन हुआ। विश्व कांप गया। देवगुरु का आगमन मकर राशि पर हुआ साथ ही वहां स्वयं विराजमान थे शनि देवता। आम मान्यता है कि शनि एक क्रूर ग्रह है और देवगुरु वृहस्पति एक सौम्य ग्रह। जब सौम्य ग्रह किसी क्रूर ग्रह के निवास में पदार्पण करेगा तो उसकी मानसिक अवस्था कैसी हो सकती है, यह विचारणीय विषय है। देवगुरु जिनके ज्ञान के समक्ष कोई टिक नहीं सकता उसे पापी ग्रह या किसी का कैसा भय परन्तु क्या दुर्योधन के आगे भीष्म पितामह की चली, जिन्ना के आगे गांधी जी की चल सकी। इतने ज्ञानवान पुरुष, परम प्रतापी लेकिन विवश और फलस्वरुप देश का विभाजन देखना पड़ा।
ठीक इसी प्रकार,
देवगुरु के मकर राशि में पदार्पण करने और शनि के विराजमान होने से कोरोना का आतंक
फैला और दंड भुगत रहा है निम्न और मध्यमवर्ग। कल कारखानों में कार्यरत कर्मचारी,
विभिन्न छोटे पदों पर कार्यरत कर्मचारी आज या तो अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं
और निम्न वर्ग के कर्मचारी सड़कों पर मारे मारे भटक रहे हैं। परेशानियों से घिरे,
स्वजनों से दूर, कलंकित जीवन जीने का आज मजबूर हैं। संकट के इस काल में शनि ग्रह
का प्रकोप उन निम्न वर्ग के कर्मचारियों पर विशेष रुप से पड़ा है अथवा समय समय पर पड़ता
भी रहता है जिससे निम्न वर्ग के जीवन में बहुत कम सुधार की संयोग बनता है। कृपया
पाठक अनयत्र ना लें क्योंकि देश के भाग्य से मनुष्य का भाग्य अवश्य जुड़ा होता है
परन्तु उसका स्वयं का भाग्य भी कार्यरत रहता है। यह शनि ही है जो व्यक्ति को ऐसी
विषम परिस्थिति दिखाता है और नीच गुरु का संयोग हो जाय तो बुद्धि अर्थहीन हो जाती
है।यह संयोग अभी समाप्त नहीं हो रहा। पुन: नवम्बर में 8 तारीख
को देवगुरु मकर राशि में प्रवेश करेंगें तब यह रोग कोरोना फिर से एक दैत्य का रुप
लेगा और अति सामान्य परिस्थितियां पुन असमान्य परिस्थिति में परिवर्तित हो
जायेंगी। इस संयोग का प्रभाव देश एवं विदेश दोनों पर प्रलंयकारी प्रभाव दिखाएगा।
परिस्थितियां प्रयत्न से परे होती नजर आयेगी।
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