बिहार का ही मुख्य पर्व छठ क्यों ?
मधुसूदन मिश्र, पं. ज्योतिर्माली
छठ
पर्व बिहार में मनाए जाने का मूल कारण
वैदिक
काल में मध्य भारत के कीकट प्रदेश में गयासुर नामक एक राक्षस था। वह भगवान विष्णु का भक्त था।
गयासुर
का शरीर भीमकाय था जब वह लेटता था तब उसका सिर उत्तरी भारत में पैर आंध्र प्रदेश और हृदय स्थल गया में होता था।
देवता
उससे भयभीत रहते थे। ब्रह्माजी भी असहाय हो गए। देवता गयासुर से मुक्ति चाहते थे
क्योंकि अकारण ही सबको परेशान करता था। देवताओ के आग्रह से विष्णु जी ने एक यज्ञ
करने की अनुमति मांगी। गयासुर को आभास हो गया था कि यज्ञ से उसका प्राणान्त होगा
फिर भी विष्णु के आग्रह को न टाल सका।
यज्ञोपरांत
गयासुर का अंत हो गया विष्णु ने उसको वरदान दिया था कि उसका नाम अमर हो जाएगा।
प्रत्येक हिन्दू अपने पित्तरों का पिंडदान करेंगे। आज तक परम्परा चल रही है।
देवगण
महायज्ञ हेतु पुरोहितों की खोज में थे तब नारदजी ने बताया कि ऐसे पुरोहित केवल
शाक्य द्वीप (अब ईरान) से लाये जा सकते हैं। ये पुरोहित सूर्य उपासक होते थे। वे
मग ब्राह्मण के नाम से बिख्यात थे (विष्णु पुराण में 2,4,6,69,व 71)।
मग का अर्थ --अग्नि पिंड अर्थात सूर्य। सूर्य विष्णु का ही स्वरूप हैं - सात ब्राह्मण
जो सूर्य उपासक थे उन्हें लाया गया। जिहोंने यज्ञ सम्पन्न किया। वे ही पुरोहित
ब्राह्मण शाकद्वीपी कहलाये।
वे सातो
ब्राह्मण गया के आसपास बस गए। एक खोज में 1937 व 1938 में गोविंदपुर में इनके वंशज रहते थे।
बिहार में मग -शाक्य द्विपी ब्राह्मणों ने अपने देव् सूर्य की उपासना करते थे उनके
साथ मगध क्षेत्र के निवासी भी सूर्य देव की उपासना करने लगे थे।
सूर्य
प्रत्यक्ष देव् हैं -सूर्य षष्ठीका वैज्ञानिक महत्व भी है। समय के अनुसार इस
उपासना को छठ महापर्व के रूप में लोगों ने प्रचलित कर दिया।
छठ
पर्व की उपासना की पद्धति खूब सरल थी लेकिन नियम कठोर थे इस पर्व में किसी पुरोहित
या ब्राहमण की आवश्यकता नहीं पड़ती थी घर
का कोई भी सदस्य इस उपासना को नियमपूर्वक कर सकता था।
आज
यह छठ पर्व भारत ही नही अपितु विदेशो में भी बड़ी श्रद्धा और पवित्रता के साथ मनाया
जाता है।
छठ
महा पर्व का उद्भव मगध (मगह )क्षेत्र से आरम्भ हुआ। खोज में ज्ञात हुआ की ये शाकद्वीपी ब्राह्मणों मगध में सात जगहों
पर सूर्य मन्दिरो की स्थापना की जैसे -देव, उलार, ओगांरी, गया और पंडारक आदि।
देव
का छठ सबसे पवित्र माना गया है।
शाक्यद्वीपी
ब्राह्मण अपने की अग्निहोत्री ब्राह्मण मानते हैं।
छठ
महापर्व में सूर्यदेव की उपासना के साथ साथ उषा और प्रत्युषा की उपासना का भी महत्व
है।
उषा
का अर्थ होता है प्रातः और प्रत्युषा का अर्थ संध्या। उषा और प्रत्युषा दोनों काल
का सूर्य से सम्बंध माना गया है। दोनों ही छठी मैया के नाम से प्रचलित है।
सूर्य
देव की संगिनी हैं यही कारण है कि छठ पूजन में उपासक लोग पहला अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य
को देते हैं फिर रात भर जागरण करते हुए भजन कीर्तन के सहारे रात बिताते है फिर दूसरे
दिन उगते सूर्य की आराधना करते हैं। सूर्य देव और परम माता श्री प्रत्युषा एवं
श्री उषा की सरल पद्धति से की गई पूजा व्रत उपासना का फल आपकी सभी मनोकामनाओं को
पूर्ण करें।
लोकआस्था
का यह महापर्व - छठ व्रत की हार्दिक शुभमंगलकामनाएं।
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